मोहम्मद अल्लामा इक़बाल
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलिस्ताँ हमारा
ग़ुर्बत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा
परबत वो सबसे ऊँचा हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती हैं, इसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिनके दम से इश्क़े-जनाँ हमारा
ऐ आबे-रोदे-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनानो-मिस्रो-रोमाँ सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी, नामो-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे-ज़माँ हमारा
‘इक़बाल’! कोई मरहम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्दो-निहाँ हमारा
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