मोहम्मद अल्लामा ‘इक़बाल’
नशा पिला के गिराना तो सबको आता है
मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
जो बादाकश थे पुराने वो उठते जाते हैं
कहीं से आबे-बक़ाए-दवाम ले साक़ी
कटी है रात तो हंगामा-गुस्तरीं में तिरी
सहर क़रीब है अल्लाह का नाम ले साक़ी
नशा पिला के गिराना तो सबको आता है
मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
जो बादाकश थे पुराने वो उठते जाते हैं
कहीं से आबे-बक़ाए-दवाम ले साक़ी
कटी है रात तो हंगामा-गुस्तरीं में तिरी
सहर क़रीब है अल्लाह का नाम ले साक़ी
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