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علامہ محمد اقبال / Allama Muḥammad Iqbāl / अल्लामा मोहम्मद इकबाल

"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा Saare Jahan Se achcha Hindustan humara"

Sunday, April 10, 2011

वो कल के ग़म-ओ-ऐश

वो कल के ग़म-ओ-ऐश पैर कुछ हक नहीं रखता
जो आज खुद अफरोज़-ओ-जिगर सोज़ नहीं है
वो कौम नहीं लेक-ए-हंगामा-ए-फ़र्दा
जिस कौम कि तक़दीर मैं इमरोज़ नहीं है
- अल्लामा इकबाल

Wo kal kay gham-o-aish per kuch Haq nahin rakhta
Jo aaj khud afroz-o-jigar soz nahin hai
Wo qaum nahin laiq-e-hangama-e-farda
Jis qaum ki taqdeer main imroz nahin hai

(Meanings: gham-o-aish = thick n' thin; khud afroz-o-jigar soz = A person with
motivation and determination; Laiq-e-hangama-e-farda = worthy to survive
anymore; imroz = Present)

Puneet Ghai

वो कल के ग़म-ओ-ऐश

वो कल के ग़म-ओ-ऐश पैर कुछ हक नहीं रखता
जो आज खुद अफरोज़-ओ-जिगर सोज़ नहीं है
वो कौम नहीं लेक-ए-हंगामा-ए-फ़र्दा
जिस कौम कि तक़दीर मैं इमरोज़ नहीं है
- अल्लामा इकबाल

Wo kal kay gham-o-aish per kuch Haq nahin rakhta
Jo aaj khud afroz-o-jigar soz nahin hai
Wo qaum nahin laiq-e-hangama-e-farda
Jis qaum ki taqdeer main imroz nahin hai

(Meanings: gham-o-aish = thick n' thin; khud afroz-o-jigar soz = A person with
motivation and determination; Laiq-e-hangama-e-farda = worthy to survive
anymore; imroz = Present)

Thursday, March 17, 2011

है फ़िक्र मुझे मिस्र-ए-सानी की ज़्यादा - अल्लामा इकबाल

है फ़िक्र मुझे मिस्र-ए-सानी की ज़्यादा
अल्लाह करे तुझ को अता फुक्र की तलवार
जो हाथ में ये तलवार भी आ जाये तो मोमिन
या खालिद-ए-जांबाज़ है, या हैदर-ए-कर्रार
- अल्लामा इकबाल 


Hai Fikr mujhey misra-e-saani ki zyada
Allah karey tujh ko ata Fuqr ki talwaar
Jo haath main ye talwaar bhi aa jayey tou Momin

Ya Khalid-e-Janbaaz hai, Ya Haider-e-Karrar

(Meanings: misra-e-saani = proceeding verse; Fuqr ki talwar = Strong Faith;
Khalid-e-Janbaaz = Khalid Bin Waleed (May Allah be pleased with him); Haider-e-

Karrar= Ali Ibn-e-Abu Talib (May Allah be pleased with him))

Thursday, March 10, 2011

ऐ तैर-ए-लाहूती

 ऐ तैर-ए-लाहूती , उस  रिज्क  से  मौत  अच्छी
जिस  रिज्क  से  आती  हो , परवाज़  मैं  कोताही
आइन-ए-जवांमर्दी , हक  गोई-ओ-बे  बाक़ी  
अल्लाह  के  शेरोन  को , आती  नहीं  रुबाही
- अल्लामा इकबाल

 Aey Tair-e-Lahooti, uss rizq say mout achi
Jis rizq say aati ho, parwaz main kotahi
Aain-e-jawanmardi, haq goi-o-bay baaqi
Allah kay sheron ko, aati nahin rubaahi

(Meanings: Tair-e-Lahooti = Simile, addressing to Muslim youth; Rizq =
food/income; Kotahi = Laziness, denotatively and connotatively referring to slavery
here; Aain-e-Jawanmardi = Conditions to live with dignity; Haq goi = Honesty; Bay
Baaqi = Bravery; Rubaahi = cunningness, hypocrisy)

Wednesday, March 9, 2011

निगाह -ए-फक्र में शान -ए-सिकंदरी क्या है ?

निगाह -ए-फक्र  में  शान -ए-सिकंदरी  क्या  है ?
खिराज  की  जो  गदा  हो , वो  केसरी  क्या  है ?
फलक  ने  की  है  अता उन  को  खाजगी  के  जिन्हें
खबर  नहीं  रवीश -ए-बंद  परवरी  क्या  है ?
किस्से  नहीं  है  तमन्ना -ए-सरवरी  लेकिन
खुदी  की  मौत  हो  जिस  में , वो  सरवरी  क्या  है ?
बुतों  से  तुझ  को  उमीदें , खुदा  से  नॉ मीदी
मुझे  बता  तो  सही  और  काफ्री क्या  है ?

- अल्लामा इकबाल 

Nigah-e-faqr main shaan-e-sikandari kya hai?

निगाह -ए-फक्र  में  शान -ए-सिकंदरी  क्या  है ?
खिराज  की  जो  गदा  हो , वो  केसरी  क्या  है ?
फलक  ने  की  है  अता उन  को  खाजगी  के  जिन्हें
खबर  नहीं  रवीश -ए-बंद  परवरी  क्या  है ?
किस्से  नहीं  है  तमन्ना -ए-सरवरी  लेकिन
खुदी  की  मौत  हो  जिस  में , वो  सरवरी  क्या  है ?
बुतों  से  तुझ  को  उमीदें , खुदा  से  नॉ मीदी
मुझे  बता  तो  सही  और  काफ्री क्या  है ?

- अल्लामा इकबाल

Nigah-e-faqr main shaan-e-sikandari kya hai?
Khiraaj ki jo gada ho, wo qaiseri kya hai?
Falaq nay ki hai ata un ko khaajgi kay jinhain
Khabar nahin rawish-e-banda parwari kya hai?
Kissey nahin hai tamanna-e-sarwari lekin
Khudi ki mout ho jis main, wo sarwari kya hai?
Buton say tujh ko umeedain, Khuda say no meedi
Mujhey bata tou sahi aur kaafri kya hai? - Allama Iqbal

(Meanings: Nigah-e-Faqr main shan-e-sikandari kya hai = What is the worth of
kingdom in eyes of a saint?; Khiraj ki jo gada ho, wo qeseri kya hai = Such a rule in
which ruler is always worried about keeping it secure, is worthless; Falaq = Nature;
Khaajgi = Ruling class; Khabar nahin = Ignored; rawish-e-banda parwari = Sense of
serving humanity; tamanna-e-sarwari = Desires to rule; Khudi ki mout ho jis main
wo sarwari kya hai = Such rule is insulting to gain which, self respect is required to
be sacrificed; Buton = Idols (referring to fellow human beings here); umeedain =
Expectations; no meedi = Disappointment; Kaafri = Non Muslim who donot believe
in Oneness of God)

Sunday, March 6, 2011

तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मकाम से गुज़र : अल्लामा इक़्बाल

तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मकाम से गुज़र
मिस्र-ओ-हिजाज़ से गुज़र, पारेस-ओ-शाम से गुज़र

जिस का अमाल है बे-गरज़, उस की जज़ा कुछ और है
हूर-ओ-ख़याम से गुज़र, बादा-ओ-जाम से गुज़र

गर्चे है दिलकुशा बहोत हुस्न-ए-फ़िरन्ग की बहार
तायरेक बुलंद बाल दाना-ओ-दाम से गुज़र

कोह शिग़ाफ़ तेरी ज़रब तुझसे कुशाद शर्क़-ओ-ग़रब
तेज़े-हिलाहल की तरह ऐश-ओ-नयाम से गुज़र

तेरा इमाम बे-हुज़ूर, तेरी नमाज़ बे-सुरूर
ऐसी नमज़ से गुज़र, ऐसे इमाम से गुज़र

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा / इक़बाल

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ- मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा

'इक़बाल' कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा ।

शायरी अल्लामा सर मुहम्मद इक़बाल

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुन्तज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हजारों सजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीन-ए-नियाज़ में

जो मैं सर-ब-सजदा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम आशना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में

तू बचा बचा के न रख इसे तेरा आईना है वो आईना
कि शिक़स्ता हो अज़ीज़तर है निगाह-ए-आईनासाज़ में

न कही जहां में अमा मिली जो अमा मिली तो कहाँ मिली
मेरे जुर्म-ए-खा़नाख़राब को तेरे अफ़्व-ए-बंदानवाज़ में

ना वो इश्क में रहीं गर्मियां ना वो हुस्न में रहीं शोखियाँ
ना वो ग़ज़नवी में तड़प रही ना वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ में

तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ : अल्लामा इक़बाल

तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ